कुछ कम बनी थी घर में रोटी सब्ज़ी
और चटनी भी कुछ कम थी
पर जब जाना सबने और परोसी अपनी थाली
पेट भर के खाया सबने , उँगलियाँ भी चाटी
लेकिन हुआ आश्चर्य सबको,
की सबके खाने के बाद भी बच गई रोटी सब्ज़ी और चटनी,
अपनों के लिए कम ना हो सोचकर,
बिना कहे लिया सबने थोड़ा कम,
मन में आया कुछ ऐसा ख़याल
क्या दुनिया नहीं है अपना परिवार
काश हम सब इस दुनिया को घर माने,
समझे और जाने ,
की कुछ कम बचे है पानी, तेल और संसाधन अनेक
और बहुत कुछ ख़त्म हो रहा इस संसार में,
सब थोड़ा कम कम ले ताकि कुछ नसीब हो सभी को
जो हैं इंसान इस धरती पर और जो है आने वाली पीढ़ियों तक,
थोड़ा कम ख़रीदें, कम फेकें, कम कचरे में जाये,
और कम में भी खुश रहने की कोशिश हो पाये ।
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