Sunset

 ढलता हुआ सूरज

जब असमान के रंग बटोरने लगता है

सूर्यास्त की लीला फैलाकर धीरे से अंधेरा करता है

फिर असमान जब चाँद की तलाश करता है,

हमारी रात आती है

हमारा दिन ख़त्म होने की बारी आती है, 

लेकिन वही सूरज

क्षितिज़ की सीमा के बाहर जब कदम रखता है,

पृथ्वी के उस पार सूर्योदय कर प्रज्वलित करता है

हमारी रात आती है

पर किसी और की सुबह जागती है

सृष्टि के नियम भी अनोखे हैं

सूरज हो या चाँद, 

या हो सितारों भरा असमान

निभाते हैं हर रोज़ अपना कर्तव्य,

दुनिया के हर कोने को रोशन करने का फ़र्ज़ 

हर रोज़ तरह तरह से समझाते हैं

इंसान को धूप अंधेरा और छाँव का अर्थ 

जब हमारी रात आती है

कहीं और सुबह की किरण आती है

फिर वहाँ की अगली रात हमारी सुबह हो जाती है

क्या ज़िंदगी भी कुछ ऐसी ही है ?

सूर्योदय और सूर्यास्त की बारी आती रहती है

कभी उजाला तो कभी अंधेरा होगा

कहीं सूरज तो कहीं चाँद रहेगा, 

चाँद भी कभी पूरा कभी आधा रहेगा,

कभी चाँद भी ना रहकर अंधेरे में रहना सिखाएगा,

पर यह चक्र स्थिर नहीं

एक के बाद दूसरा आता रहेगा ! 

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