लड़खड़ाता समय

है जो यह नज़ारा दुखों से भरा,
अस्वस्थ हैं सभी, समय जैसे लड़खड़ाके चल रहा,
बीमारियों का आंधी तूफान जैसे तहलका मचा रहा,
जीने की जंग में सांसों का बाज़ार बन रहा ।

Frontline workers, 24/7 जान हथेली पर रख,
बना रहे कईं इंसानियत की मिसालें,
लेकिन कईं और जगह,
बेयमानी की लपेट में जल रही मशालें,
दवाइयां और अस्पतालों का खर्चा,
हुआ जो इस भयावह समय में दसगुना,
रह गया गरीब की जान का मूल अमीर से दूर कितना,
व्यापार की सीमा न हो इंसानियत से परे,
धन से ऊपर काश सब इंसानों का मूल्य करें,
खबरों से अनजान ही बेहतर लगता अब,
नहीं समझ पा रहे,
क्या सच है, क्या झूठ का परदा, 
क्या अमीरों की साज़िश, क्या व्यापारियों का धंधा ।

जीतेंगे जरूर यह जंग, बस संवेदना रख घर में रहकर,
इन्सानियत के नाते, अपनी क्षमता से मदद करें,
प्रार्थना की सब स्वस्थ हो जाए जल्द ही,
फिर से मुस्कुराएं इंसान, यह दुनिया पूरी ।