झील बनी शमशान

इतनी सुंदर , झील अनोखी,

घर से सिर्फ़ १० मिनट की दूरी,

रोज़ का था हमारा आना जाना,

लगता सृष्टि और प्रकृति का हो ख़ज़ाना,

कभी सुबह के सूर्योदय की रोशनी,

कभी शाम के सूर्यास्त की लाली,

चिड़ियों का कूदना चहकना,

बतख़ों का गोते लगाना,

मछलियों और कछुओं का लुका छुपी खेलना,

फ़ुल पौधों का हो वह जैसे राजघराना,

प्यारी सी थी वह जगह,

बसती हमारे दिल में धड़कन की तरह,

रहता मन हमारा वहाँ, 

खींचे चले जाते रोज़ उसी राह,

लेकिन एक रोज़ की है बात,

बिछाई चटाई, बैठे दोस्तों के साथ,

दिखी एक मछली थी मरी,

दुख हुआ , लगा कोई पक्षी की शिकार है हुई,

फिर देखा कईं और मछलियाँ है झील में पड़ी,

आगे चलते चलते भर आया दिल, 

लगा जैसे एक स्वर्ग सी जगह गई शहरी विकास के पापों से मिल,

पक्षी का नहीं, पूरी झील हुई unsustainable development और untreated waste की शिकार,

प्रकृति की ख़ुशबू बनी उदासी की बदबू, नम हुई आँख़ें,

पता किया तो समझ में आया इस अनहोनी का कारण,

बस एक गलती, ले डूबी प्रकृति को, बनाया सब कुछ हानिकारक,

प्रदूषित पानी जानलेवा पदार्थ लेकर मिल गया था उस झील के सुंदर पानी में,

निकला था किसी इंसानी बस्ती के नाले से, 

लगा जैसे इंसान ने बनाया खूबसूरत सृष्टि को शमशान,

दम घुटते हुए देखा , उनको जो थी सब जानें नादान,

आया ग़ुस्सा हर उस अप्राकृतिक पदार्थ पर,

जो हम इंसान बिना सोचे करते उपयोग, प्रयोग 

और फेंकते इस धरती पर,

एक एक क़दम हमारा,

दुनिया के विकास की ओर,

जितना भी हम लेते इस धरती से,

उतना ही दायित्व है हमारा,

सृष्टि की सुरक्षा की ओर,

यदि हमारी वजह से होगी यह धरती बीमार,

तो अवश्य होगा इंसान पे पलटवार,

भूकंप, अकाल, प्रदूषण, बाढ़,

सृष्टि की लीला है अपरंपार,

बनाया हमें इस सृष्टि ने , 

दिया इंसानों को दिमाग़,

बाक़ी प्राणियों की सुरक्षा के हैं हम ज़िम्मेदार,

फ़र्ज़ है हमारा इस सृष्टि का संरक्षण ,

 है यह सबसे अनमोल रतन,

आएँ हर दिन सोच समझ के बिताएँ,

इस धरती को अपनी माता कहलायें,

कि जितना लें, उससे ज़्यादा देने की कोशिश की जाये,

Reduce reuse recycle को practice में लाए ।