दिल, दिमाग, समय और समाज

दिल , दिमाग , समय और समाज,
यही सब चलाते ज़िन्दगी का कामकाज,
दिल चाहता है अपनी राह खुद बनाने को,
दिमाग देता एक आकार उस राह पर जाने को,
समाज बतलाता उस राह को सही या गलत,
पर समय, इन सब से जो है ऊपर,
आराम से कहता , रखो सब सब्र,
दिल होता परेशान, कब आएगा सही समय,
दिमाग समझाता , ऐसी ही है जिंदगी की लय,
समाज देता विभिन्न तरह के राय ,
फिर दिल कहता , यही है सही समय,
समय अपने आप पे विश्वास का ,
समय एक कदम बढ़ाने का ,
जो कदम हो सोच की बदलाव का,
कभी ना समझा किसी की सोच को गलत,
ना कभी ठहराया खुद को समाज से अलग,
बस रखना चाही खुद की एक सोच,
आशा रखी, समाज ना समझे इसे कोई बोझ,
खुद समाज का एक अंग है हम,
बस चाहते एक कदम बदलाव की ओर,
ताकि चल सके हम सभी समय के साथ,
हो इस बदलाव में सभी का आशीर्वाद,
एक बदलाव, जिसमें हो सब एक साथ,
न कोई पक्षपात, न कोई भेदभाव,
हो आस पास सभी अपने ,
देखे सब साथ विकास के सपने,
कोशिश करें दूर करने की सभी का दुख,
हो पाए सभी के जीवन में सुख,
कर पाए अपने हिस्से का योगदान,
इस विकास की ओर, मुश्किल लेकिन जरूरी,
पर अगर हो सबका साथ, ज़रूर हो जाएगा आसान ।

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